
भोजन का तेल में छुपे विशैले रसायन, शरीर को दे सकता है भारी नुकसान।
रसोई घर में भोजन पकाते समय अक्सर हम देखते हैं कि हर तरफ धुंआ -धुंआ सा छाया रहता है। यह एक बहुत ही आम और साधारण सी बात है जिसे हम सब नज़रंदाज़ करते हैं एवं कुछ खास ध्यान भी नहीं देते हैं। एक समय था जब भोजन को पकाने के लिए लकड़ी, कोयला इत्यादि ईंधन का प्रयोग होता था तो धुंयाँ होना स्वाभाविक था परन्तु, अब तो गैस का ज़माना चल रहा है फिर भी रसोई घर में धुएं की एक परत बनी ही रहती है जो खाना पकने के कुछ देर बाद अदृश्य हो जाती है।
अब सब कहेंगे कि यह तो आम बात है, खाना पक रहा है तो धुंयाँ उठेगा ही। ज़माने से एक कहावत चली आ रही है कि जहाँ धुंआ उठता है वहाँ पर ज़रूर आग है। बिल्कुल सही कहावत है यह, हर रसोईघर में आग भी है और उससे होने वाली दिक्कत और परेशानियाँ भी अदृश्य रूप से दिन प्रतिदिन पलती जा रही है जो किसी को भी पता नही चलता है।
हर दिन भोजन पकते वक्त खुद ब खुद एक विशैले पदार्थ का उत्पादन होता है, जिसके लिए जाने अनजाने में हम सब खुद ही जिम्मेदार हैं। जी! हाँ, बिल्कुल यही है, हम सब खुद ही जिम्मेदार हैं। हैरानी की बात तो तब है, जब हम बीमार पड़ते हैं एवं चिकित्सक के पास जाते हैं, दवाई इत्यादि का सेवन करके स्वस्थ होते हैं परन्तु बीमारी की परेशानियाँ पुनः लौट कर ज्यूँ की त्युं आ जाती है। इस तरह यह सिलसिला निरन्तर चलता ही रहता है। हम दवाई लेते रहते हैं पर असली रहस्य का पता ही नहीं चल पाता कि यह ज़हर हम खुद बना रहे हैं जिसे खुद खा रहें हैं और बांट भी रहे हैं।
भोजन पकाने की मुख्य पारंपरिक प्रक्रिया
भोजन को पकाने के लिए मुख्य रूप से तीन प्रकार की प्रक्रिया है।
पहली है, उबालकर अथवा भाँप में पकाना। इसमें पकाने का माध्यम पानी है।
भात, दाल, सूप इत्यादि जैसे व्यंजन मुख्य रूप से यह श्रेणी में शामिल है।
दूसरी है तलना, जिसमे खाद्य सामग्रियों को तेल अथवा घी के माद्यम से पकाया जाता है। पूरी, पराठा, समोसा, नित्य भोजन सामग्रियों को तलना इत्यादि इसमें शामिल है।
तीसरा है, सूखे तरीके से सामग्रियों को पकाना जिसमे आग अथवा आग के ताप को सीधे अथवा अप्रत्यक्ष तरीके से उपयोग में लाया जाता है। तंदूर, तवा, चूल्हा आदि को यह श्रेणी में उपयोग किया जाता है। रोटी, पराठा, लिट्टी, विभिन्न कबाब, बैगन भरता, इत्यादि व्यंजन को तैयार करने के लिए यह प्रक्रिया का उपयोग होता है।
भोजन पकाने के लिए तीनो प्रक्रियाएँ ही आवश्यक है क्यों कि अनेक व्यंजन ऐसे हैं जिन्हें पकाने के लिए यह तीनों प्रक्रियायों को एक साथ उपयोग करना पड़ता है।
परन्तु सबसे सरल और सुरक्षित है पहला विकल्प, जिसमें भाँप अथवा उबालकर कर खाना पकाया जाता है। परन्तु शेष दोनों प्रक्रियाओं में अतिरिक्त ताप में तेल गरम होते ही रासायनिक विक्रिया होने लगती है जिससे जन्म लेता है एक नुकसानदायक ज़हरीला रसायन पदार्थ।
आइए बताते हैं यह खतरनाक ज़हरीला पदार्थ का जन्म किस तरह से होता है।
भोजन को तल कर पकाने के लिए घी अथवा तेल का उपयोग किया जाता है। यह तेल अथवा घी को ताप देकर उचित तापमात्रा पर लाया जाता है जिसके पश्चात ही इच्छा अनुसार खाद्य सामग्रियों को तला जाता है। नैसर्गिक रूप से तेल गरम होने पर खुद ब खुद ही रासायनिक विक्रिया होने लगती है।
परन्तु तेल को लंबे समय तक उच्च तापमात्रा में गर्म करते रहने से तेल में मौजूद वसा (फैट) आंशिक सड़न की प्रक्रिया से गुजरने लगता है जिसके कारण फैटी एसिड्स एवं ग्लिसरॉल का उत्पादन अपने आप ही होने लगता है।
इसके पश्चात आगे अतिरिक्त गर्म अवस्था से शुक्ष्म रूप से तैयार बना ग्लिसरॉल का भी तुरंत सड़न होने लगता है जिससे एक विशैले रासनायिक पदार्थ का जन्म होता है, जिसे रसायन शास्त्र में ‘एक्रोलीन’ (Acrolein) कहते हैं। तेल जितनी बार गर्म होगा अथवा इस्तेमाल होगा उतना ही यह पदार्थ की मात्रा बढ़ने लगेगी।
क्या है यह ‘एक्रोलीन’ (Acrolein)?
रसायन शास्त्र के अनुसार यह एक असंतृप्त एल्डिहाइड (unsaturated aldehyde) है जिसे प्रोपिनल (Propenal) भी कहा जाता है। औधौगिक रूप से यह रसायन पदार्थ को ‘प्रोपिलीन’ (Propylene) से उत्पादन किया जाता है। ग्लिसरॉल अथवा ग्लिसरीन को उच्च तापमात्रा 280℃ में गर्म किया जाय तब सड़न प्रक्रिया से यह रसायन तैयार हो जाता है।
यह पदार्थ को कीटनाशक तथा अन्य कई प्रकार के रासायनिक सामग्री तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
इसका रासायनिक सूत्र है C3H40।
इसका रूप कैसा है।
यह, बेरंग अथवा भूरा तरल पदार्थ जैसा प्रतीत होता है। तेल अधिक गर्म होने पर जो धुंयाँ निकलने लगता है उसमे ही एक्रोलीन गैस रहता है। यह गन्ध रहीत पदार्थ है परन्तु तेल या घी में रहकर जलने के बाद गन्ध को फैलाता है। यह गैस अत्याधिक वाष्पशील होने पर वातावरण में तुरंत फैल जाता एवं शरीर के अंदर मुँह अथवा नाक के द्वारा प्रवेश कर जाता है।
इसके से होनेवाली परेशानियाँ
यह एक विषैला, जलन पैदा करने वाला, उत्तेजक पदार्थ है जो नाक,आंख तथा त्वचा पर जल्द असर करने लगता है। यह नाक से होता हुआ स्वास तंत्र एवं फेफड़ों में बैठ जाता है। इसके चपेट में आने पर बार-बार नाक बहना, छींक आना, खाँसी से तकलीफ होना एवं ठीक बीमारी ठीक न होना, सांस रुकने जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। दमा से पीड़ित व्यक्ति को इसके प्रभाव से अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है।
यह पदार्थ पानी में घुलनशील है तथा भोजन व्यंजन में रहकर पाचन तंत्र एवं हजम क्रिया को असन्तुलित कर देता है। पेट में अतिरिक्त अम्लता, जलन, वायु विकार फिर इन सबसे दस्त इत्यादि जैसी परेशानियों का जन्म देती है। शरीर में यह रसायन की मात्रा अधिक बढ़ जाने पर बहुत नुकसान दायक सिद्ध हो सकता है, जैसे कि यह हमारे शरीर में स्थित प्रोटीन तत्व, डीएनए को प्रभावित करने लगता है। मस्तिष्क के स्वस्थ को नुकसान पोहुँचाता है। मूड स्विंग, मानसिक भ्रांतियाँ, चिड़चिड़ापन, अत्यधिक गुस्सा आना, कोई सिद्धांत पर न आ पाना जैसी परेशानियाँ भी हो हो सकती है।
यह रसायन और किस वस्तु में पाया जाता है
तेल, घी के अलावा जो भी वस्तु में ग्लिसरॉल (ग्लिसरीन) मौजूद है एवं उस वस्तु को उच्च तापमात्रा में गर्म किया जाय तब यह रसायन अपने आप बनने लगता है। सिगरेट में ग्लिसरीन का उपयोग होता है इस तरह से एक जलती हुई सिगरेट 220 µg एक्रोलीन तैयार करती है जो हाइड्रोजन सायनाइड से लगभग 40 प्रतिशत अधिक है। यह रसायन से फेफड़ों की बीमारी होती है एवं यह कार्सिनोजेनिक (carcinogenic) है।
इससे बचने का उपाय
यह विषैला रसायन प्रितिदिन हमारे शरीर में स्वास एवं भोजन के द्वारा प्रवेश कर रहा है। कुछ सावधानियों पर ध्यान केंद्रित करने पर नुकसान को कम किया जा सकता है।
- जैसा कि यह बताया गया है कि यह रसायन की प्रकृति पानी में घुलनशील है इसलिए अधिक से अधिक यह प्रयास रहें कि खाद्य सामग्रियों को पकाते वक़्त पानी का उपयोग अधिक से अधिक किया जाय। पानी में यह रसायन का तेज एवं प्रभाव कम होने लगेगा।
- भोजन तैयार करते समय तेल से काला धुंयाँ निकलने तक अतिरिक्त गरम करने से बचें। तेल गर्म होते ही जो धुंयाँ निकलेगा उसमे ‘एक्रोलीन है। इसलिए ताप को संतुलित रखें, तेल से धुंयाँ उठने न दें।
- गर्म तेल को बार बार गर्म करने से बचे। जले हुए तेल का उपयोग करने से बचें।
- तेल में मौजूद ग्लिसरॉल जलने पर एक अलग गंध निकलने लगती है उसको अनुभव करें एवं पुनः उस तेल का उपयोग न करें।
- रसोई घर में खिड़की, गर्म हवा निकासी पंखा होने से नुकसान कम हो जायेगा।
- नुकसान प्रभाव से बचने के लिए, भोजन पकाते समय नाक के ऊपर कपड़ा लगाकर रखना उचित होगा।
- संभव होने पर खाद्य सामग्रियों को भाँप अथवा गर्म पानी में उबालकर थोड़ा पकाकर फिर तलने पर यह विषैला रसायन से बचा जा सकता है। निश्चय करना है कि तेल को अतिरिक्त गर्म न होने दिया जाय।
- दमा अथवा अन्य स्वास कष्ट की बीमारी अथवा अन्य बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को खाना पकाते समय नाक पर कपड़ा (मास्क) लगाना आवश्यक है जिससे उन्हें राहत मिलेगी।
समोसा और समोसेवाला भैया
इससे पता चलता है कि दुकान में मिलनेवाला समोसा आदि को तैयार करने के लिए सारी सामग्रियाँ ताज़ी होती है, क्योंकि बासी सामग्रियों को हमारी इन्द्रियाँ आँख, नाक तथा जीभ तो पकड़ ही लेगी पर रसायन को कैसे पकड़े! जिसका न कोई रूप है और न कोई गन्ध है और ऊपर से वो दिखाई भी नहीं देता।
तो अबसे समोसेवाला भैया के समोसा अथवा कोई भी बाहर के भोजन आदि सेवन से अम्लता, अपाच्य, वायु विकार की शिकायत होने पर उन्हें यह ऊपर बताएं हुए लेख के संदेश से सूचित करें एवं सब स्वस्थ रहें।